बापू को याद करते हुए---
सुनो!!
क्या तुम्हें नहीं लगा कभी,
कि तुम्हें थोड़ा कम महात्मा होना चाहिए था!
कि तुम्हें तनिक कम पूजनीय होना था,
क्या तुम्हें नहीं लगा कभी कि महात्मा और पूजनीय
पत्थर बन जाया करते हैं,
या बस विषय बन कर रह जाते हैं,
किसी भी मौके पर और हर मौके पर,
किसी भी चौराहे पर,
कभी सेमीनार में,
तो कभी वेबीनार में,
कभी किताबों में तो,
कभी अख़बारों में!
अगर तुम तस्वीरों से ऊपर उठना चाहते हो तो
बाहर निकलो बापू विषय से
कुछ बोलो
कुछ तर्क वितर्क करो
फिर से करो कोई दांडी
या कोई चम्पारण!!!
मश
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