Thursday, October 22, 2020

कहानी

कहानी 
मां तुम मदर  इंडिया क्यों नहीं बन गई

मुझे नहीं पता कि तुम ये पत्र पढ़ पाओगी भी या नहीं मगर हर ख़त पढ़ने के लिए लिखा भी तो नहीं जाता ।                                        मेरे लिए यह ख़त  वह सब कुछ कहना सुनना चाहता है जो मैं किसी और को कह या सुना नहीं सकती । हो सकता है यह ख़त यूं ही  संदूक के किसी कोने में पड़ा रह जाए या फिर यह भी हो सकता है यह ख़त कभी छुपाने के लिए किसी किताब के अंदर रखा जाए और वहीं दबा रह जाए और फिर किसी दिन पीला ज़र्द होकर और टुकड़े-टुकड़े होकर अस्तित्व हीन हो जाए; मगर मेरे लिए इसका होना या ना होना या अपनी मंजिल तक पहुंचना उतना मायने नहीं रखता, मेरे लिए तो बस यह एक आस है ; मेरे मन का एक आईना है।
 मां हम दो ही तो थे मैं और क। मैं जानती थी कि हम दोनों को ही तुमने अपनी कोख से जन्म दिया था यह तो तुमने बहुत बहुत बाद में बताया था कि क और मेरे बीच का 6 साल का फासला ख़ाली नहीं था।  उसमें भी तुम्हारी कोख से किसी ने जन्म लिया था; क्या पता वह कौन था शायद उसे तुम्हारी कोख नसीब नहीं थी । मैं जानती हूं आज तुम बेहद उदास होगी; कौन मां होगी ऐसी जो ऐसी घटनाओं से विचलित नहीं हो जाए हर मां होती होगी मुझे नहीं पता मां तुम्हारा विचलित होना कितना क के लिए है और कितना क के किए के लिए ।मैं तुमसे सवाल नहीं करना चाहती मां तुमने तो मुझे सवाल करने का हक़  कभी दिया भी नहीं । याद करो मां जब हमने शहर बदला था तब जबकि बौजी ज़िंदा  थे और क का और मेरा स्कूल बदलने की बारी आई थी तो तुमने मेरे लिए सरकारी स्कूल चुना था और क को तुम 20 किलोमीटर दूर एक अंग्रेजी स्कूल में भेजने का ख्वाब देख रही थी ।सच कहूं मां मुझे उस दिन अच्छा नहीं लगा था। क्यों उस  दिन मुझे अच्छा नहीं लगा था यह मुझसे कोई उस दिन पूछता तो मैं बता नहीं पाती क्योंकि मैंने तो हमेशा से यही देखा था कि क के लिए तुम कैसे जान निछावर किया करती थी । मुझे भी वही सब सही लगता था । लगता था कि सब ठीक-ठाक है इसमें कुछ भी अलग नहीं है क का दुनिया में होना कितना ज़रूरी है और बाकियों का होना ना होना बराबर है।   इतनी शिद्दत से यह बात लगती थी कि मैं अपनी दुनिया में होने की बात भूल जाया करती थी। और तुम भी तो मां तुम्हें भी तो यही लगता था कि दुनिया में मेरा और तुम्हारा होना तो हो ही जाएगा लेकिन क और बौजी का होना कितनी बड़ी बात है; उसके लिए तुम कितनी कोशिश किया करती थी। सच बताना मां तुम किसके लिए दुखी हो आज क के लिए   किए के लिए। तुमने भी तो कितने दुःख सहे  मां, बौजी जब तक रहे तुमपर  आतंक करते  रहे और तुम भी सहती रही  वह सब।  तुम कितनी नार्मल थी माँ वह सब झेलते हुए।  आख़िर  तुमने बौजी के जाने के बाद भी घर की दहलीज़  पार की।  म गर बौजी के रहते तुम इतनी कमज़ोर  क्यों बनी रही।  मुझे वह दिन बहुत अच्छी तरह याद है जिस एक  दिन क के सामने और मेरे सामने बौजी ने पहली बार तुम्हारे बाल कस कर पकड़ लिए थे. क यह सब देख कर तुम्हारे साथ चिपक  गया था।  उस दिन तुमने घर की दहलीज़  क्यों नहीं पार कर  रही थी  मां ;अगर तुम उसी दिन घर की दहलीज़  लाँघ  जाती तो हो सकता है  इस कहानी का अंत कुछ और ही होता।  क उन दिनों कितना मासूम था मां  और तुम भी कितनी भोली थी। 
मैंने भी उसी दिन ही तो पहला पाठ पढ़ा था औरत और मर्द के रिश्ते का। उसी दिन पहला पाठ पढ़ा था मर्द और औरत के रिश्ते का इससे पहले तो बौजी सिर्फ बौजी थे और मां सिर्फ मां थी। लेकिन उस दिन बौजी ने जब तुम्हारे बाल खींचकर तुम्हें मारा था तो मर्द हो गए थे और तुम औरत।  तुमने बताया था कि बौजी की मार में दरअसल अत्याचार जैसा कुछ नहीं था और यह बताया था कि मर्द का मज़बूत होना ही प्रकृति है..उस दिन मेरा भी मन हुआ था ताकतवर बनने का शायद इस दर से कि कहीं कोई किसी दिन  मुझे भी  ऐसे ही .....
 हम दोनों मूकदर्शक थे।  हम कर भी क्या सकते थे।  उस दिन बौजी मुझे तो कल्पनाओं के दानव  लगे थे मां और मां पता नहीं क  को बौजी कैसे लगे थे शायद डरावने  या शायद बहुत ज्यादा शक्तिशाली; मगर मुझे तो उसके बाद बौजी कभी अच्छे नहीं लगे मेरे अंदर भी समझ नहीं थी मगर फिर भी मन में डर  और उदासी जैसी कोई चीज़  भर गयी थी।  बौजी  उसके बाद कभी अच्छे नहीं लगे उस दिन भी नहीं जिस दिन  अस्पताल में बिस्तर पर पड़े हुए खाली  आंखों से तुम्हें देख रहे थे। उनकी आंखें कितनी बड़ी बड़ी लग रही थी बड़ी और डरावनी भी।  तुम क्यों रोई थी उस दिन माँ।  मुझे तुम्हारा रोना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। सच कहो माँ  तुम बौजी के जाने से दुखी थी या तुम्हें मेरी और का की परवरिश की चिंता सताती थी।  उस दिन बौजी दुनिया छोड़कर चले गए  थे लेकिन अपना एक अंश  छोड़ गए थे। 
बहुत कुछ याद आता है माँ ---  याद है ना मां पीली ड्रेस जो मैं अन्ना  के साथ जाकर अपनी फीस के पैसे से ले आई थी और तुमने कहा था कि मैं दिनभर फैक्टरी में खटकर तुम्हें पा लूं और तुम फीस के पैसे से उड़ाओ।  जब भी मैंने वो ड्रेस पहनती थी  मुझे तुम्हारी वही बात याद आती  थी इसीलिए एक दिन मैंने उसे संदूक में  बंद कर दिया था और फिर जब उसे निकाला था तो मैं उससे  बहुत बड़ी हो चुकी थी।  मुझे उससे बड़ा हो जाना बहुत अच्छा लगा था मां क्योंकि मैं उसे कभी पहनना ही नहीं चाहती थी। क को तुमने ऐसा कुछ कभी नहीं कहा जब वह शाम को देर  से बाहर रहने लगा तो तुम डरने लग गयी थी ..यह डर तुम मुझसे बाँट लिया  करती थी लेकिन हर बार जब क बाहर से आता तो तुम उसके सामने पानी हो जाएगा करती ; तुम्हारी आवाज भी धीमी हो जाती। कभी-कभी तो तुम्हारी आंखें भी भर आती थी, जब तुम उसके सर पर हाथ फेरती और मुझे लगता मुझे भगवान ने क क्यों नहीं बनाया।  आज मैं तुम्हारे सामने एक सच बयान करना चाहती हूं  कि मेरी गुस्ताख़ियों को जब तुम माफ नहीं करती थी तो मैं  भगवान के सामने जाकर यही मानती थी कि अगले जन्म में मुझे क होना है।  क और मैं एक साथ बड़े हो रहे थे मैं 6 साल आगे और वह मुझसे 6 साल पीछे। मगर तुम्हारी नज़र में सिर्फ मैं बड़ी हो जाती थी और क हमेशा छोटा रहता था।  एक दिन जब मोहल्ले के लड़कों ने क की शिकायत की थी और वे सारे हमारे दरवाज़े पर आकर खड़े हो गए थे तब भी तुमने क को निर्दोष माना था और तुम बाकियों के  घर पर झगड़ने चली गई थी; तुम्हें लगा था कि यह सारे बाकी लोग इस बिन बच्चे बाप के बच्चे के पीछे पड़ गए हैं ; क्योंकि तुम्हें हमेशा यही लगता था कि क के सर से बाप का साया उठ जाने के कारण यह सब कुछ हो रहा है।  क सचमुच बड़ा हो रहा था उसकी आवाज़ बदल रही थी ; मगर वह पढ़ाई में पिछड़ने लग गया था एक दिन जब स्कूल से बुलावा आया तो पहली बार तुमने मुझपर अपना भरोसा जताया था और कहा था कि मैं भी स्कूल चलूँ क्योंकि वहां टीचर  जो कुछ कहेगी उसे मैं ही h hug d0,समझ सकती हूं।  उस दिन पहली बार तुम्हें दुखी होते देखा था।  इससे पहले क के लिए तुम हमेशा खुश ही रहा करती थी तुम तो उसे घर का चिराग , घर का इकलौता सहारा, परिवार और समाज  में तुम्हारी इज़्ज़त का सबब ही तो जानती और मानती आई थी।  उस दिन तुम्हें पता चला था कि उन तमाम दिनों में जब तुम सोच रही थी  कि क स्कूल जा रहा है असल में  वह कहीं और जा रहा था और उसके बारे में किसी को भी पता नहीं था कि दरअसल वह जा कहाँ रहा था।  स्कूल  वालों ने कह दिया कि एक मौका और देंगे अगर ऐसा आगे चलता रहा तो वे क को स्कूल से निकाल देंगे।   उस दिन पहली बार मां तुम्हें अपनी परेशानी को अपनी मैली साड़ी के पल्लू से पोंछते  हुए देखा था।   मैं तुम्हारे साथ साथ और सर  नीचे झुका कर चल रही थी।   मेरे अंदर हिम्मत नहीं थी कि मैं तुम्हारे चेहरे की तरफ देखूं।  उस दिन मैं तुम्हारी परेशानी में परेशान नहीं थी मैं खुश थी मुझे लगा था कि आज जब क शाम के समय घर आएगा तो तुम उसे वैसे ही कुछ सुनाओगी  जैसे तुम मुझे सुनाया करती हो लेकिन तुमने वैसा कुछ नहीं किया था तुम  तो फिर पानी हो गई थी।   याद है ना मां मैंने एक  दिन स्कूल से लौटकर  तुम्हें बताया था कि मदर  इंडिया में नरगिस दत्त ने अपने बेटे  को मार दिया था तो उस दिन तुम  अजीब नज़रों  से मुझे देखती रही थी।  
‘ऐसी अशुभ  बात नहीं किया करते’  तुमने यही कहा था
‘ मां भी कभी अपने बेटे को मारती है वह भी अपने हाथ से’ तुमने यह कहा था।  
‘उसने गलत काम किया था मां’ मैंने तर्क दिया था। 
‘ जिस दिन मां बनेगी उस दिन पता चलेगा क्या सही है और क्या गलत’
क अब नहीं बचेगा तुम जान गयी हो न माँ इसीलिए तुम जीते जी ऐसा कुछ देखना नहीं चाहती; और इसीलिए तुमने ख़ुद को ख़त्म करने के लिए -----तुम तो किसी  की भी माँ हो सकती थी माँ उसकी भी जिनके साथ क और उसके दोस्तों ने ----
डॉक्टर कहते हैं कि तुम ख़तरे   से बाहर हो जाओगी और तुम कहती हो तुम जीना नहीं चाहती और क को  तुम अब  भी मरने नहीं देना चाहती।   तुम बिस्तर पर पड़ी हुई अभी भी कहती हो कि उन चार लड़कों के बीच क नहीं था जिन्होंने लड़की को उस रात भजन सिंह की दुकान के सामने से अगवा कर लिया था। दो पल को मान भी लो कि क उन चारों में नहीं था मगर वे तीन ---उनका क्या माँ उन्होंने भी ऐसा क्यों किया तुम बाकी तीनों की भी तो माँ बन सकती हो। सच्ची बताओ माँ तुम क के लिए दुखी हो या क के किये के लिए। माँ उस पहले दिन जब बौजी ने तुम्हारे बालों को भींचकर  पकड़ लिया था तो मेरे अंदर एक बड़ा सा डर पैदा हो गया था, तुम्हारे अंदर सब कुछ ख़ाली था किसी  बड़े गहरे और सूखे कुँऐं जैसा ख़ाली  और क के अंदर डर उसी दिन मर गया था।  माँ  सब कुछ उसी दिन हो गया था और उसके बाद सब कुछ रक्तबीज  होता चला गया था !
 बस इतना ही.
 इतिश्री !
 

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