Friday, December 10, 2021

सुनो!!

जुगराफ़िया...
सुनो!
मेरा और तुम्हारा जुगराफ़िया अलग अलग है
तुम्हारे जुगराफ़िया में अनंत संभावनाएं हैं
तुम एक किल्क में दुनिया नाप लेते हो
और मैं!
मैं एक कदम चलता हूं
और नज़रें जितनी दूर तक जाती हैं वहां तक सब देख लेना चाहता हूं
तुम्हारे जुगराफ़िया में ख़ूबसूरती  और स्थिरता है
और मेरे जुगराफ़िया में ख़ूबसूरती और जीवन है
तुम्हारे जुगराफ़िया में सब कुछ साफ़ और सुंदर है
मेरे जुगराफ़िया में थोड़ा सा सूफ़ियाना है
मेरे जुगराफिया में ख़ुशबू है
और तुम्हारे जुगराफिया में ख़ुशबू नदारद है
तुम्हारा जुगराफ़िया तुम्हारे 10 बाई12 के कमरे से बाहिर नहीं आ या कभी
और मेरा जुगराफ़िया किसी कमरे में सिमट न पाया कभी...
नहीं नहीं मुझे कोई शिकवा नहीं है
मैं तो बस कहना चाहता हूं
कि मेरा और तुम्हारा जुगराफ़िया
अलग अलग है!!
ममता

Sunday, March 21, 2021

World Poetry Day

World Poetry Day
सामान और सम्मान
सुनो!!
मेरे पास है,
थोड़ी सी धूप,
छांव थोड़ी सी,
रात थोड़ी,
पेड़, पहाड़, चांद थोड़ा- सा,
दूसरों के ग़म और खुशियां थोड़ी,
बारिश और हवाएं थोड़ी,
थोड़ी सी हंसी और कभी आंसू भी थोड़े से,
ये सारे के सारे हैं कविता के सामान  मेरे पास!
कितना समृद्ध महसूस करता हूं मैं,
जब चाहे जहां चाहे बस इनमें से
लेकर थोड़ा - सा सामान गढ़ लेता हूं
मैं एक कविता!
इस सामान से बढ़कर मेरे लिए
क्या होगा कोई सम्मान!!
मश

Tuesday, February 16, 2021

सुनो!!

सुनो!!
कहां हो तुम सब,
दुबले-पतले,
मैले कुचैले,
बेपरवाह!
बिंदास!
हर साइज़ और हर उम्र के,
वसंत की आहट मिलते ही
हाथों में पर्चियां पकड़े
चंदा जमा करते तुम सब!
लानत-मलानत झेलते,
रात भर बांस और बल्लियों को खड़ा करते,
कभी फिल्मी धुनों पर मटकते,
इस बार तुम आए नहीं,
मगर मुझे बहुत याद आए तुम सब,
मैंने भी पिछली बार कुछ उपदेश दे डाले थे लगे हाथों ,
जब एक इतवार चाय के वक्त,
 दरवाज़े पर घंटी बजाई थी तुम सबने,
मैं देख नहीं पाया था दरअसल,
तुम्हारी आस्था--
जो बांस और बल्लियों के घेरे में थी,
साड़ियों और दुपट्टों की जुगत में थी,
रंग बिरंगे कागज़ों के फूलों में भी,
मैं समझ नहीं पाया था कि तुम,
मैनेजमेंट का पहला पाठ ले रहे थे,
मैं तो सोचता था शायद तुम स्वर्ग से मां के अवतरित होने की प्रतीक्षा में हो!!
मैं प्रतीक्षा करूंगा...
अगली बार
बार - बार
कि तुम आओगे..
वैसे ही 
हाथों में पर्चियां पकड़े
चंदा जमा करते तुम सब!!
मश
15/02/2021

Friday, February 5, 2021

सुनो!!

सुनो!!
शहर...
मैंने ही देखे थे सुविधाओं के ख़्वाब,
चौड़ी और चिकनी सड़कें,
अट्टालिकाएं, बाज़ार,
सरपट भागती चमचमाती गाड़ियां,
और भी बहुत कुछ ज़िंदगी को
ख़ूबसूरत बनाने के सामान!
फिर मैं क्यों उकता गया हूं!!
मुझे चाहिए साफ हवा,
हरे पेड़
जंगल
नीला आसमां
टिमटिमाते तारे
जुगनू
बीरबहूटी
इकहरे मकान
और वह सब कुछ जो गुम हो गया है...
क्या तुम लौटा सकते हो वह सब कुछ!!
मश

Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्र

सुनो!!
मैंने ख़रीद लिए थे दो छोटे तिरंगे
कल रात ही दस -दस रूपए के,
और चिट्टे श्वेत दो जोड़ी कपड़े भी
तैयार कर लिए थे अपने लिए,
 देशभक्ति गीत पुराने नये भी सुन
ही रहा हूं सुबह से,
गणतंत्र मय हो गया हूं एक बार फिर,
उत्सव मय हो गया हूं  एक बार फिर,
आह्लादित हूं !!
भर आया हूं देशभक्ति से!!
मगर इसके आगे भी जाना चाहता हूं मैं,
हर गणतंत्र में,सोच रहा हूं...
सिर्फ़ यहीं क्यों रूक जाता हूं मैं!!!
मश

Saturday, January 9, 2021

खे़द सहित...

ख़ेद  सहित....... 

मान लीजिये अ एक महत्वपूर्ण पत्रिका के संपादक हैं और ब एक राइटर। अगर हम कह दें कि अ और ब के  constructive interference से ही एक बेहतरीन पत्रिका तैयार हो सकती है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । 

तत्काल सन्दर्भ के लिए इसे यहां उद्धृत किया जाता है.... 

‘When two waves come close to one another, their effects add together. If the crests, or highest parts of the waves, line up perfectly, then the crest of the combined wave will be the sum of the heights of the two original crests. Likewise, if the lowest parts of the waves (the troughs) line up just right, then the combined trough will be the depth of the two original troughs combined. This is known as, in which two waves (of the same wavelength) interact in such a way that they are aligned, leading to a new wave that is bigger than the original wave.’


एक विचाराधीन रचना पर एक संपादक ने प्रश्न किया। प्रश्न ऐसा था जिससे यह पता चलता था कि संपादक ने रचना को बड़ी बारीकी से पढ़ा है। रचनाकार  के लिए यह बड़ी सुकून की बात थी कि उसकी रचना को बारीकी से पढ़ा गया। मगर रचना के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर संपादक ने एक बेहद अनाड़ी सा प्रश्न कर दिया यह एक सुस्वादु भोजन में अचानक आ गए पत्थर की तरह था। 

लब्बो लुआब …. 

राइटर महत्वपूर्ण है…  

 संपादक महत्वपूर्ण है… 

संपादक मगर इसलिए महत्वपूर्ण नहीं कि वह एक ऐसे पद पर आसीन है जहाँ से वह रचना के अच्छे और न अच्छे होने का निर्णय  कर सकता है। वह महत्वपूर्ण  है कि एक रचना के महत्व को पहचानने का दारोमदार उसी पर है। 

अब प्रश्न यह है कि रचना के अच्छे और अच्छे न होने की पहचान  क्या  हो।  तय कौन करे कि अमुक रचना अच्छी है या अच्छी नहीं है क्योंकि राइटर को तो अपना कहा लिखा हमेशा ही अच्छा लगेगा और वह उसके अच्छे होने के सौ तर्क दे देगा। 

तो दरअसल रचना पानी के तल में पड़े किसी ऑब्जेक्ट की तरह होती है। उसे देख पाने के लिए पानी का साफ़ होना और देखने वाले की नज़र का साफ़ होना ज़्यादा ज़रूरी है। इन दोनों के साफ़ होने पर यह पहचानने में कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए कि राइटर ने जो लिखा है वह सिर्फ़ लिखने के शौक में लिख डाला है या कि वह वाक़ई कुछ महत्वपूर्ण कहना चाहता। अपनी आवाज़ अवाम तक पहुंचाना चाहता है, पाठक तक पहुंचाना चाहता है। 

मश 

10/01/2021