Tuesday, February 16, 2021

सुनो!!

सुनो!!
कहां हो तुम सब,
दुबले-पतले,
मैले कुचैले,
बेपरवाह!
बिंदास!
हर साइज़ और हर उम्र के,
वसंत की आहट मिलते ही
हाथों में पर्चियां पकड़े
चंदा जमा करते तुम सब!
लानत-मलानत झेलते,
रात भर बांस और बल्लियों को खड़ा करते,
कभी फिल्मी धुनों पर मटकते,
इस बार तुम आए नहीं,
मगर मुझे बहुत याद आए तुम सब,
मैंने भी पिछली बार कुछ उपदेश दे डाले थे लगे हाथों ,
जब एक इतवार चाय के वक्त,
 दरवाज़े पर घंटी बजाई थी तुम सबने,
मैं देख नहीं पाया था दरअसल,
तुम्हारी आस्था--
जो बांस और बल्लियों के घेरे में थी,
साड़ियों और दुपट्टों की जुगत में थी,
रंग बिरंगे कागज़ों के फूलों में भी,
मैं समझ नहीं पाया था कि तुम,
मैनेजमेंट का पहला पाठ ले रहे थे,
मैं तो सोचता था शायद तुम स्वर्ग से मां के अवतरित होने की प्रतीक्षा में हो!!
मैं प्रतीक्षा करूंगा...
अगली बार
बार - बार
कि तुम आओगे..
वैसे ही 
हाथों में पर्चियां पकड़े
चंदा जमा करते तुम सब!!
मश
15/02/2021

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