असगर वजाहत के यात्रा संस्मरण 'अतीत का दरवाज़ा' से गुज़रते हुए--
*किताबों के जल्दी ख़त्म होने के लिए चैप्टर छोटे और अक्षर मोटे होने ज़रूरी है (जो इसमें हैं)
*पेत्रा,मारामारोश,चीकसैरेदा,बयामारे .….को देखने की इच्छा जाग गई।
*कार और ट्रेन की दौड़ वाले चैप्टर को पढ़ कर विचार आया कि यह दौड़ ख़तरनाक भी हो सकती थी
*कारण चाहे जो हो लेकिन चाउशेस्कू और इलीना को गोलियों से भून डालना __ऐसा लगा मानो हम सभ्यता में कहीं बहुत पीछे चले गए हों।यह जानकर अच्छा लगा कि रोमानिया ने 1990 से मृत्यु दण्ड को वर्जित कर दिया।
हमारे देश में भी फांसी के विरुद्ध आवाज़ उठती रही है मगर ये आवाज़ ऐसे समय उठती है जब किसी गुनहगार को फांसी दी जाने वाली होती है और उस समय गुनाह बड़ा और फांसी के ख़िलाफ़ उठी आवाज़ कमज़ोर हो जाती है।
*मैक्सिकन चित्र कार फ्रिडा कालो के विवरण अमृता शेरगिल की याद दिलाते हैं..आह..हमने भी ऐसा कुछ क्यों न संजोया!!!
*चित्रकार जो़ल्ट का भारतीय महिलाओं की छवि उकेरा अद्भुत लगा।
और आख़िर में किताब में एक स्थान पर विषय की आवृत्ति शायद प्रकाशन की चूक है लेकिन अखरती तो है ही।
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