Thursday, February 27, 2020

संजना डुंगडुंग की याद में

संजना डुंगडुंग मर गई। 
संजना डुंगडुंग अब सिर्फ एक नाम नहीं वह एक नया शब्द है। शब्दों के निर्माण की एक प्रक्रिया यह भी है कि  व्यक्ति ही शब्द बन जाता है ; वह प्रतीक बन जाता है। संजना डुंगडुंग कहीं भी हो सकती है वह उत्तर में हो सकती है वह दक्षिण में हो सकती है ; वह पूरब और पश्चिम में  हो सकती है या फिर वह मध्य देश में हो सकती है !
संजना डुंगडुंग कुत्ते की मौत मर गई !
कुत्ते की मौत कैसी होती है क्या बाकियों की मौत से कुछ अलग, मौत जीवन का सबसे बड़ा सत्य, कितने रहस्यों से आवृत, कितनी किंवदतियों को अपने में समेटे हुए,मौत तो मौत ही है फिर क्या कुत्ते की मौत और क्या किसी और जीव की मौत। ना मालूम यह मुहावरा क्यों बना होगा, रही होगी कोई ज़रुरत और वैसे भी आज तो हम काफी सभ्य हो गए है कुत्ते की मौत पर कितना बावेला मचाते हैं उन्हें कहाँ मरने देते है बेमौत !
संजना डुंगडुंग बोर्ड की परीक्षायें दे रही थी !
वह क्यों दे रही थी बोर्ड की परीक्षा;वह क्यों चाहती थी पढ़ना ;क्या वह जीने के लिए पढ़ना चाहती थी अगर वह जीने के लिए ही पढ़ना चाहती थी तो क्यों मर गयी  ;क्या वह सचमुच पढ़ रही थी या वह  परीक्षा दे रही थी। क्या उस पढ़ाई  ने उसे इतनी सी ताकत नहीं दी थी की वह ये बता सके कि इस समय उसकी ज़रुरत परीक्षा नहीं  इलाज है; कि उसे झाड़ फूँक नहीं इंजेक्शन की ज़रुरत है। क्या उसकी अबतक की पढ़ाई ने उसकी आवाज़  में  कोई धार नहीं पैदा की थी जिससे वह अपने आस पास के लोगों की बात को  काट सके। क्या संजना डुंगडुंग इसलिए पढ़ रही थी   कि वह किसी दिन बोर्ड की परीक्षा पास करके कोई नौकरी कर  लेगी या फिर अपने लिए और अपने परिवार के लिए  कुछ बेहतर चीज़ें  लेगी।  आखिर क्या ज़रुरत थी  संजना डुंगडुंग को पढ़ने की और ऐसा पढ़ने कि इतने साल   किताबें पलटने के बाद भी वह यह न जान पाई कि इंजेक्शन उसके लिए कितना कितना ज़रूरी था !!ऐसा  महसूस होता है कि संजना डुंगडुंग को कुछ और ही पढ़ना था और वह कुछ और और ही पढ़े जा  रही थी !!
सलाम  ऐसी पत्रकारिता को!
प्रभात खबर के 27 फरवरी 2020 के अंक  के अनुसार 17 साल की संजना डुंगडुंग को कुत्ते ने काट लिया था,  .वह इंजेक्शन नहीं ले सकी उसकी झाड़ फंक करके उसे बोर्ड  की परीक्षा देने के लिए भेज दिया गया। जब स्थिति बिगड़ने पर उसे शहर के अस्पताल में लाया गया तो वह मौत के कगार पर थी। 
और संजना डुंगडुंग मर गई !!
लेकिन अब वह सिर्फ एक नाम नहीं वह शब्द बन गई है; किसी दिन आप उसे किसी शब्दकोष में  पाएंगे !!

आज बस इतना ही। 

ममता 


Saturday, February 22, 2020

हर रोज़

हर रोज़ मैं टुकड़े टुकड़े हो जाती हूं सुबह सुबह
एक टुकड़ा घर के कोनों में
एक और  बच्चे के हिस्से में
एक दूसरा दफ़्तर की मेज़ पर
एक टुकड़ा पार्टनर के लिए
एक मां के पास
एक कभी किसी ग्रॉसरी की दूकान तो कभी किसी सब्जी की दूकान पर
एक कभी अपने लिए बिंदी और चूड़ी की दूकान पर कुछ तलाशता हुआ
फिर शाम को वे सारे टुकड़े समेट कर मैं वापिस कभी रजाई और चादर में दुबक कर नींद के आगोश में चली जाती हूं।

Aloha


मित्रों अब सनोवर में आपसे  रूबरू हुआ करेंंगे।
सनोवर थोड़े ज्यादा स्पेस के लिए !!